परम श्रधेय श्री राधे शक्ति माँ को हाज़िर नाजिर मान कर कहता हूँ की जो कहूँगा सच कहूँगा, सच के सिवा कुछ न कहूँगा / - सरल कवी
मैं
एक सीढ़ी और
ऊपर चढ़ गया
| जैसे जैसे मैं
पांचवी मंझिल के
करीब पहुँच रहा
था, मेरे मन
में अजीबसी ख़ुशी,
व्यग्रता और आनंद
की मिली जुली
लेहर दौड़ने लगी
थी | सीढियों में
एक छोटे से
चकोर स्थान पर
बिछे हरे रंग
के कारपेट पर
बैठे एक व्यक्ति ने
फ़ौरन अपनी नोट
-बुक बंद की
और फुर्ती से
उठकर मेरे आगे
पंक्ति में घुस
गया |
उसकी
उम्र लगभग पचास
के करीब थी,
लम्बा सलेटी कलर
का कुर्ता, सर
के बाल गर्दन
तक झूल रहे
थे | चेहरे पर
कुछ सोचने के
भाव |
“जय माता
दी ” मैंने परिचय
जानने की इच्छा
से वार्तालाभ शुरू
किया , “आपका नाम
जान सकता हूँ,
मित्रवर?”
उसने
तनिक गर्दन मेरी
तरफ घुमाई | उसकी
खोई खोईसी आखों
में कुछ तो
था, जिसने मुझे
उसके प्रति सहानभूति दिखने
को मजबूर
किया |
“सुनिए मित्रवर ” उसने
मेरी टोन में
उत्तर दिया, “आया
हूँ उल्लासनगर से
, पांच बजे निकला था
घर से, खूब
जोर से पानी
बरसे, भीग गया
निचे -ऊपर से
,फिर भी बिना
चिंता फ़िक्र से,
हो गया मेरा
यहाँ तक आना
, मकसद , ‘देवी माँ
’ के दर्शन पाना,
कम है मेरा
फ्रूट का ठेला
लगाना, शौक मेरा
लिखना - गाना , नाम
है मेरा विश्वनाथ मस्ताना!”
“वाह वाह
” मैंने हर्षभरित हलकी
हसी के साथ
कहा , “क्या शायरी
भरे अंदाज़ में
परिचय दिया है
! क्या बात है|”
“बात तो
सिर्फ ‘राधे शक्ति
माँ ’ की है
” वह दर्शनिक अंदाज़
में बोला , “हम
तो भाई, मुर्ख
इंसान है, बुराइयों की
खान है, सच्ची
बात से अनजान
है, हर जगह
पर बैमान है,
न हमारा दीन
है न ईमान
है, अपने स्वार्थ की
पहचान है, इसीलिए
परेशान है | ये
तो ‘श्री राधे
शक्ति माँ’ मेहरबान है,
जो रखती हमारा
ध्यान है, दे
देती वरदान है,
ये विश्वनाथ मांगने
आया चरणों में
स्थान है |”
“बहुत खूब
” मैं प्रशंसात्मक स्वर
में बोला
, “ कुछ और बताओ
अपने बारे में,
मस्ताना जी |”
“बचपन मेरा
गरीबी में बीता
” मस्ताना विश्वनाथ फिर
शुरू हो गया
, “लिखी -पढाई पूरी
नहीं हो पाई
, एक झोपडी में
उम्र बिताई, बूढ़े
मेरे बाप और
भाई, गरीबी और आभाव मैं
ऐसी मार लगाई
, ज़िन्दगी अभी तक
संभल ना पाई
, एक फ्रूट के
दूकान पर नौकरी
करता था, रात
- दिन मरता था, फिर भी पापी
पेट पूरा नहीं
भरता था, अपने
नसिब को कोसा
करता था
, आँखों से पानी
भरता था | दर
दर की ठोकरों से
कुछ न कुछ
सिखाने लगा , बस
इस्सी लिए कविताएं लिखने
लगा |”
“ठीक केह
रहे हो ”, मैंने
गर्दन हिलाई , “जब
भीतर बहुत कुछ
एखटा होकर बहार
निकलने को मचलता
है , तभी आदमी
शायरी करता है
|”
“एकदम सही
फ़रमाया भाई ” विश्वनाथ मस्ताना का
स्वर भारी हो
गया, “मुझे जहाँ
भी किसीने बताया
मैं जाने लगा,
मंदिर , मस्जिद , दरगाह
, पीर फकीर सभी
को शीश झुकाने
लगा, कभी तो
दिन फिरेंगे अपने
आप को समझाने
लगा, लेकिन अपनी
मेहनत से कभी
मुह नहीं तोडा,
फ्रूट की दूकान
पर नौकरी करना
नहीं छोड़ा, क्योंकि अगर
नौकरी नहीं करता
तो कहा जाता
? क्या पीता क्या
खाता ?”
विश्वनाथ मस्ताना अपने
दिल का दर्द
जैसे आज ही
सुनाने को बेताब
था, “ फिर एक
दिन क़यामत हुई
, एक ‘देवी माँ’
के भक्त से
मुलाकात हुई उसे
‘श्री राधे माँ
’ भवन में हो
रही चौकी की
बात हुई , मैं
यहाँ आने लगा
तो ‘देवी माँ’
की रहमत की
बरसात हुई | दुःख
की रात गयी
, सुख की प्रभात
हुई , मेरा मुकदर
मुस्कुराने लगा , ‘देवी
माँ ’ ने दया
दृष्टी ऐसी की
, मैंने नौकरी छोड़
दी और अपना फ्रूट
का ठेला लगाने
लगा|”
“मज्जा आ गया
” मैंने मुस्कुराते हुए
कहा ,”इसमें तुम्हारी श्रद्धा और
तुम्हारा विश्वास, तुम्हारी लगन
भी तो मिली हुई
है |”
“भाई साहब
, श्रद्धा , विश्वास और
लगन का ही
तो सारा खेल
है, वरना हर
चीज़ फ़ैल है
” मस्ताना गंभीर स्वर
में बोले, “ मैं
आतुट विश्वास और
भावना के साथ
यहाँ आता हूँ, अपनी बात ‘देवी
माँ ’ तक
पहुंचता हूँ और
फिर निश्चिन्त हो
जाता हूँ | यह
भी ‘राधे शक्ति
माँ ’ का ही
तो प्रताप है,
आज एकदम सुखी
मेरे माँ -बाप
है, टूटी -फूटी झोपडी को पक्का बना लिया है, बिजली और जल
लगवा लिया है, जो भी चाहा
यहाँ से पाया
है, तंगी और
मुसीबतों से निजात
पाई है | आराम
से घर गृहस्थी चल
रही है, मगर
उमर भी ढल
रही है |”
फिर
विश्वनाथ मस्ताना का
स्वर द्रवित हो
उठा, “अब तो
बस एक ही
अरदास लगाने आया
हूँ ! बिटिया सायानी
हो गयी है,
उसकी कहीं शादी-लगन हो जाए, यह वर पाने
आया हूँ | ‘देवी
माँ’ तो अन्तर्यामी है
| मेरी मुराद जरूर
पूरी करने वाली
है | मेरी झोली
भरने वाली है
| मैं इसी विश्वास और
यकीं से केह
सकता हूँ की
‘राधे शक्ति माँ
’ अपना जलवा दिखलाएगी, मेरी
हालत पर तरस
खाएगी और इसमें
संशय भी नहीं
है की वो
घडी शीघ्र ही
आएगी | मेरी बिटिया
की शादी जल्दी
से जल्दी हो
जायेगी | सबका बनती
बिघडे काम है
, ‘राधे शक्ति माँ
’ को प्रणाम है
’|"
मैं
नत मस्तक होकर
उसकी अरदास जल्द
पूरी होने की
प्रार्थना करने लगा
|
(निरंतर ..)
Note - प्रिय
'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित
कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के
अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं
इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल
पर भेज सकते हैं |
आप अगर अपने अनुभव, 'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं, तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में -
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Sanjeev Gupta
Email - sanjeev@globaladvertisers.in
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